Monday, 31 October 2016

वो बचपन की दीवाली


तब " पटाखा " मतलब होताथा , धमाकों भरी दीवाली
और "फुलझडी" मतलब होता था, डंडी रंगों वाली

नासमझी और नादानी के, वो दिन अब ढल गए हैं
पकड़ी है जबसे समझ , सारे मतलब बदल गए हैं


वो कानों पर देना हाथ, लगा कर बमों की लड़ी
वो चरखी पर नाचना, वो घुमाना फुलझडी



 वो घर में बनी मिठाई का , क्या  खूब था जलवा
वो मठरी, वो लड्डू, वो मूंग दाल का हलवा


अपनों को भेजा करते थे , कार्ड लिख कर हाथों से,
जुडती थी दिल की भावनाएं , उन लिखी हुई बातों से


  कई दिन पहले से होती थी ,  खुशियों की आस

और कई दिनों तक रहता था, उस ख़ुशी का अहसास

करते है याद, क्या ख़ूब वो ज़माना था
उस छोटे से दिल में, कितनी खुशियों का खजाना था

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